हीर छन्द आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे । और लगी , बात बुरी , खार जो जुबा उगे ।। प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी । मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।। आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही । दूर चलो , और चलो , मिलाप जो मन नही ।। डोर वही , छूट गयी , जहाँ आप हम हुए । करूँ विनय , मातु तनय , दूर नही हम हुए ।। २६/०४/२०२५ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हीर छन्द आप मिलें , शूल चुभे , मुझे खार से लगे । और लगी , बात बुरी , खार जो जुबा उगे ।। प्यार मिटा , स्वार्थ जगा , रीति जगत की बनी । मातु तुम्हीं , भूल गयी , मुझे हो तुम्हीं जनी ।। आस नही , पास कही , सुनों खास अब नही ।