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घर की चारदीवारी मे मोन चहचहाट है पीले हाथ की उम्र

घर की चारदीवारी मे मोन चहचहाट है
पीले हाथ की उम्र हो चली ,सच है, या कोई आहट है ।
पराया धन बिन ब्याह अपने घर पराई हो चली
गुड्डे गुडिया के खेल मे, कुंवारी कन्या की चिंता से मिली।
कुंवारी पर आकर परिवार की गिनती निपट गई 
उस छोर कैसे करोगी, इस छोर की दुनियां बस यही सिमट गई।
सुंदर नही है, बड़े घर कहा ब्याह पाओगे
सुंदर है , बदहाई हो , बिन मोल ,आसानी से तिर जाओगे।
मासूमियत, काबिलियत तन पर आकर बिक गई
कितना लगाओगे , पिता की सारी कमाई खाली हाथो मे बदल गई।
शिक्षित है, सरकारी तो नही
सरकारी है, ग्रहकार्य मे दक्ष तो नहीं
गरहकार्य मे दक्ष तो है , शिक्षित तो नही
समाज की थाली मे पकवान की बहार है 
खा पाएंगे कि नही, माता पिता पर चिंताओं का अंबार है।
ब्याह मे देरी सामाजिक अपराध जैसा हो गया
अच्छा वर न मिले इस देरी न ही ,समाज तो क्या ,
कुंवारी को परिवार ने ही  झकझोर दिया।
हर दिन उसकी उम्र गिनाए जानी लगी
पैदा क्यों हुई, दूजो के झुटलाने पर तालीम दी जाने लगी।
 कुंवारी हूं , अपनो के मुंह से बोझ मानी जाने लगी।
 मैं कुंवारी हू
 मां बाप के गुरुर की सवारी हूं
 समाज कुछ भी कहे
 एक नई क्रांति की चिंगारी हूं
 गर्व से कहती हूं
 मैं कुंवारी हूं।।।।

©Meri Kalam
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