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White अगर मिल ना पता तुमसे, तो शायद मैं अबोध रह जा

White अगर मिल ना पता तुमसे, तो शायद मैं अबोध रह जाता , 
एक तरफा ही रही मुलाकात हमारी, बस एक अजनबी की तरह तुमको दूर से निहारता रहा। 

तुम्हारे हाव-भाव को पढ़ने कि कोशिश की, 
तुम्हारे व्यवहार  को तुमसे बात किए बगैर ही समझ लिया था मैंने। 

ज़रा देर के लिए तुम ओझल क्या हुए मेरी आँखोंं से, बहुत बैचैन महसूस किया था मैंने, 
जब तुम वापस लौट आए, तो लगा जैसे तपते रेगिस्तान में बारिश बौछार हुई हो।

कितना सुकुन था ना सिर्फ़ तुम्हारे होने में।

©" शमी सतीश " (Satish Girotiya)
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