#माँ_कहती_है । --------------------- सुंदर सुखद बना जीवन को माँ कहती है । छूलो बढ़कर नील गगन को माँ कहती है ।। मुझसे तू है तुझमें मैं हूँ तू मेरी परछाई है । बोल तोतली भाये मन को माँ कहती है ।। उठना गिरना चलना ये भी सीख दिया हमने, माँ का मान मिला इस तन को माँ कहती है।। तेरी नटखट चाल आकर छुप जाना गोदी सुरभित कर डाला तनमन को माँ कहती है।। तू मेरा प्रतिबिम्ब धरा पर चलती फिरती मूरत, नयन निहारें रूप छोड़ दर्पन को माँ कहती है।। मन उदास हो जाता जबआंखों से हो ओझल , इंद्रधनुष में रंग दिया है मेरे मन को माँ कहती है। कल्पना दिवाकर रहा तुम्हारे अंतर्मन का बीज , कोटि नमन इस अद्भुत सृजन को माँ कहती है। दिवाकर चंद्र त्रिपाठी । #MothersDay