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गरमी ने ज्यों अपना आंचल समेटा सर्दी ने अपनी गुनगुन

गरमी ने ज्यों अपना आंचल समेटा
सर्दी ने अपनी गुनगुनी बाहें फैलाई

देख क्षितिज पर रवि- रश्मियों को
दिल में सुकून की इक सांस आई

पुरवाई ने ज्यों हौले से कदम किए पीछे
अलसाई पछुआ देखो दौड़ी चली आई

पहाड़ों पर अब बर्फीली चादर बिछने लगी
घरों में गर्म चादरें फिर से निकल आईं

ओस की रजत बूंदे यूँ गिरी तृणशिरों पर
जैसे कोई रमणी केशों को धोकर हो आई

©Kirbadh #Morning  शेरो शायरी हिंदी शायरी लव शायरी शायरी attitude
गरमी ने ज्यों अपना आंचल समेटा
सर्दी ने अपनी गुनगुनी बाहें फैलाई

देख क्षितिज पर रवि- रश्मियों को
दिल में सुकून की इक सांस आई

पुरवाई ने ज्यों हौले से कदम किए पीछे
अलसाई पछुआ देखो दौड़ी चली आई

पहाड़ों पर अब बर्फीली चादर बिछने लगी
घरों में गर्म चादरें फिर से निकल आईं

ओस की रजत बूंदे यूँ गिरी तृणशिरों पर
जैसे कोई रमणी केशों को धोकर हो आई

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