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असभ्यता की मुंडेरों पर जब कव्वों की कांव

असभ्यता की   मुंडेरों पर  जब 
 कव्वों  की     कांव  कांव  से  
वातावरण    कोलाहल    पूर्णं हो उठा 
तब  तनाव  और अवसादों   की चक्राकार  व्रति 
का वर्तुल  भी  मस्तिष्क मे  जीवंत  होने लगा 
फिर  कैसे  कोई रह सकता हैँ  निर्लिप्त  और  पृथक 
और  कैसे  कोई  प्रेम    मृदुता  और   मधुरता  क़े 
विषय   पर  विचार  कर  सकता  हैँ? असभ्यता  की  मुंडेरों पर......
असभ्यता की   मुंडेरों पर  जब 
 कव्वों  की     कांव  कांव  से  
वातावरण    कोलाहल    पूर्णं हो उठा 
तब  तनाव  और अवसादों   की चक्राकार  व्रति 
का वर्तुल  भी  मस्तिष्क मे  जीवंत  होने लगा 
फिर  कैसे  कोई रह सकता हैँ  निर्लिप्त  और  पृथक 
और  कैसे  कोई  प्रेम    मृदुता  और   मधुरता  क़े 
विषय   पर  विचार  कर  सकता  हैँ? असभ्यता  की  मुंडेरों पर......