रिश्ते रिश्तों की बुनियाद पे खड़े हैं उम्र के पुल, इनमें अपनेपन का एक और रिश्ता जोड़ना बाकी है। कुछ दूरियां मिटा दें, कुछ गलतफहमियाँ भी, हर दिल की चाह में अपनापन बाकी है। यादें बीते लम्हों की कुछ यादें बस दिल में रह गईं, इनकी खुशबू में खो जाना बाकी है। तस्वीरों के इन रंगों में वो धुंधली मुस्कान, आँखों से लगा के उसे महसूस करना बाकी है। उम्मीद हर रात के अंधेरों में उम्मीदों का चिराग जलता है, टूटे हौंसलों में नयी राह बनाना बाकी है। उगता सूरज हर दिन एक नया वादा करता है, बिखरी किरणों को संजोना बाकी है। सफर राहों में हैं कांटे, मगर सफर जारी है, हर कदम पर जीत का एहसास बाकी है। सफर का मज़ा उसी में है मेरे दोस्त, जब हर मोड़ पे एक नया इम्तिहान बाकी है। खुद से मुलाकात खुद को पाने की चाह में खुद से दूर हो गए, अपने ही अक्स से वो मुलाकात बाकी है। आईने में झाँककर पूछें जो अपना हाल, उस खोए चेहरे का सवाल बाकी है। ©नवनीत ठाकुर शायरी हिंदी में