White ग़ज़ल :- इश्क़ की छाई अब खुमारी है रात करवट भरी गुजारी है सबने बोला बड़ी बिमारी है माँ ने फिर भी नज़र उतारी है फूल आयेंगे एक दिन सुंदर बागबाँ ने करी तैयारी है चाँद कुछ भी न आसमां में अब उससे प्यारी जमीं हमारी है कैसे करता गिला रकीबों से हाथ उनके दिखी कटारी है जुल्म़ सहना समाज के हँसकर आज इंसान की लाचारी है लोग कहते हैं राहबर जिसको वो हक़ीक़त में इक शिकारी है लाज़ आती नहीं प्रखर उसको ऐसा लगता बड़ा भिखारी है महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- इश्क़ की छाई अब खुमारी है रात करवट भरी गुजारी है सबने बोला बड़ी बिमारी है माँ ने फिर भी नज़र उतारी है फूल आयेंगे एक दिन सुंदर बागबाँ ने करी तैयारी है चाँद कुछ भी न आसमां में अब