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दौड़ते हैं कितने सपने भागती रेल के तरह छूट भी जाते

दौड़ते हैं कितने सपने
भागती रेल के तरह 
छूट भी जाते हैं कई सपने
 स्टेशन से छूटी रेल की तरह
मुसाफिर बना रहता है जो
इस सफ़र का
पा लेता है एक दिन
अपने हिस्से का आसमां

©Rajni Sardana
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