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#हास्य कविता - आईना ज़माने की हवा जब मुझको भी लगी,

#हास्य कविता - आईना

ज़माने की हवा जब मुझको भी लगी,
उम्र से पकी सफेदी को मैं रंगने चली ।

आज लग रही थी खुद को कुछ अलहदा- अलहदा,
संवार रही थी बालों को पहले से ज्यादा।

मुए आईने से ये सहा ना गया,
केश संवारते ही सारी झुर्रिया दिखाने लगा।

मैं गुनगुना रही थी जवानी के किस्से,
और वो संभल के चलने को बताने लगा।

अनदेखा कर उसको मैंने मेकअप पुतवा लिया,
अगली सुबह फिर सच सामने आ गया।

सिर पर जवानी और चेहरे पर बुढ़ापा है,
मुआ आईना फिर मुँह चिढ़ाता है।

उतर गई तब सारी खुमारी,
जब मियाँ ने पूछा "अरे कैसी हो गई सूरत तुम्हारी "।

ब्यूटीपार्लर ने ये तुम्हारा क्या हाल किया,
जवानी तो आई नहीं बुढ़ापा भी बेहाल किया।

©Rajni Sardana
  #हास्य_कविता
#आईना