" ये फ़ैज़ तेरी हैं एहसास लिये बैठे हैं ,
मुख्तलिफ बातों में अब तेरी बातें लिये बैठे हैं ,
गुंजाइश कुछ भी हो आज नहीं तो कल मुकम्मल हो जायेंगी कुछ ना कुछ ,
जाने ये दुआ कब काम आयेगी एसे में तेरे इश्क मुहब्बत का सजदा करने बैठे हैं ."
--- रबिन्द्र राम
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