एक औरत के लिए "श्रृंगार" आभूषण के समान है ...पर मेरे मन में यही गहन प्रश्न उठता है कि श्रृंगार किसी को लुभाने के लिए क्यों किया जाए? क्या अपने व्यक्तित्व को कृत्रिम आभूषण व सौंदर्य प्रसाधनों से ढकना जरूरी है...इस मामले में मेरी सोच जरा हटकर है क्योंकि "मेरे व्यक्तित्व के आभूषण मेरी स्पष्टता और मेरी सादगी है"। आंतरिक गुणों की सुंदरता से अगर व्यक्तित्व को सुसज्जित किया जाए तो वह बाहर की तरफ भी निखार लाता है इसी से संबंधित एक कविता है
मैं स्वस्थ हूं, सुंदर हूं,शालीन हूं
अपने आप में लाजवाब में हूं