चाह रहा चाँद का चकोर चहकाना भी कि चूम ले चरण चकवा के चारु हो जाए ऊपर से उर लेके उतरे उषा में ही कि निशा उतरे तो चकवा उतारू हो जाए पावस में परिवर्तन परिणय का हो प्राज्ञ पत्र बने प्रमाण पंखेरू हो जाए मन से मिले है मग ना मिले तो मर जाए मर के वियोग में मलय मेरु हो जाए रो रही है रुकमणी राधा राग रमती है राधेश के रोम-रोम रक्त में रमाई है मीरा मौन मानती है मोहन के मन मे तो राधा-मीरा-रुकमणी तीनों ही समाई है धारण धतुरा करा धन्य हुए है ये धरा धरा पे जो मीरा अवतार लेके आई है मीरा ने है मन मारा मन मारा है राधा ने दोनो ने ही पीर रीत प्रेम की निभाई है छल से छलेगा छलियाँ ही छल को तो छल छिन्न-भिन्न होके चूर-चूर हो जाएगा दिल पे लगेगा या कि दिल से लगेगा या कि दिल से जाएगा दूर-दूर हो जाएगा गिरेगा गरुण भी वो गिरेगा गंवारों सा जो यदि गाथा से ज्यादा गुरुर हो जाएगा मित्र मानवता के मंत्र मृदु भाषा ज्ञानी है जो ऐसा मित्र है वो मशहूर हो जाएगा #RDV19