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जीवन कुछ नहीं हैँ बस उसे तो रण चुकाना हैँ

जीवन  कुछ  नहीं हैँ 
बस  उसे  तो  रण  चुकाना   हैँ   इस   देह  का 
समय  और  काल  शाश्वत  हैँ 
नश्वर  फूल  अकेला हैँ इस  उपवन का 
विस्तीर्ण हैँ  सागर  की   सतह  तो  क्या  हुआ 
आदमी का  जीवन तो  बस  जैसे  तिनके का  
राग रंग  और  उत्स्व  की  महिमा   हैँ  कितनी 
जब  उतरा  आँगन मे  झोंका   उस. महा  मृत्यु का 
हैँ  भविष्य  कितना  बादल  पर  बैठी  उस  बूँद  का 
तपी  चट्टान पर  गिर जब वो  बन जाती  भाफ  
क्या  कह सकेंगे  हम  ये  पाप  था  उस  नश्वरता का ? नश्वरता........
जीवन  कुछ  नहीं हैँ 
बस  उसे  तो  रण  चुकाना   हैँ   इस   देह  का 
समय  और  काल  शाश्वत  हैँ 
नश्वर  फूल  अकेला हैँ इस  उपवन का 
विस्तीर्ण हैँ  सागर  की   सतह  तो  क्या  हुआ 
आदमी का  जीवन तो  बस  जैसे  तिनके का  
राग रंग  और  उत्स्व  की  महिमा   हैँ  कितनी 
जब  उतरा  आँगन मे  झोंका   उस. महा  मृत्यु का 
हैँ  भविष्य  कितना  बादल  पर  बैठी  उस  बूँद  का 
तपी  चट्टान पर  गिर जब वो  बन जाती  भाफ  
क्या  कह सकेंगे  हम  ये  पाप  था  उस  नश्वरता का ? नश्वरता........