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अभी मुझे आवारापन से ही अनुशासित होने दो, अभी मुझे

अभी मुझे आवारापन से ही अनुशासित होने दो,
अभी मुझे बैठे रहने की ज़िद से चालित होने दो।
युग के काव्य मंच का संचालन भी कर दिखला दूंगा,
अभी मुझे केवल दो आँखों से संचालित होने दो

-रचित दीक्षित

©साहित्य संजीवनी
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