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मैं तों मात्र लौ हूँ एक दीये की मुझे तों बस जलना

मैं  तों मात्र  लौ हूँ एक दीये की
मुझे तों बस जलना हैं. भभकना  हैं
और बुझ  जाना हैं
मैं नहीं जानती मेरी नियति  मे सिर्फ जलना ही
क्यों. लिखा हैं
मैं तों यह भी नहीं जानती  क़ि मुझमे ये जलने की.
अपार ऊर्जा   आती कहाँ से  हैं
जबकि जिस दीये की. मैं लौ  हूँ
उस दीये तले  घना अंधेरा हैं

©Parasram Arora
  दीया तले अंधेरा

दीया तले अंधेरा #कविता

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