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शून्य से सृजन‌ की ओर पहला कदम विरान सा, दूर से,

शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा,
 दूर से, लिखना सभी को,
 होता कहीं आसान सा,
 मनोबल को सुदृढ़ करना,
 फिर पंक्तियों का ताल मेल,
 और झिझक भरी आकांक्षाओं का,
 मन मस्तिष्क में मेल जोल,
 न अंलकारों की समझ,
 और मात्राओं की उठा-पटक,
 छंदों का विरह होना स्वयं में,
 लय बद्ध होने की मन में खटक,
 कहां आसान था सफ़र,
 लिखना, मिटाना बार-बार,
 कोई भी आकर करता सृजन को,
 अपने चक्षुओं से तार-तार,
 फिर स्वयं एकाकी होकर,
 स्वयं को ढांढस बंधानां,
 फिर सृजन को जन्म देना,
 और कलम फिर से उठाना,
 लिखना सामाजिक कुंठाओं पर,
 या प्रेम को आलोकित करना,
 कुंडली मार कर बैठे समाज पर,
 खादियों का शोषित करना,
 दुर्गम था पग रखना साहित्य में,
 आया था जब अनजान सा,
 शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा...

©अनुज शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा,
 दूर से, लिखना सभी को,
 होता कहीं आसान सा,
 मनोबल को सुदृढ़ करना,
 फिर पंक्तियों का ताल मेल,
 और झिझक भरी आकांक्षाओं का,
 मन मस्तिष्क में मेल जोल,
शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा,
 दूर से, लिखना सभी को,
 होता कहीं आसान सा,
 मनोबल को सुदृढ़ करना,
 फिर पंक्तियों का ताल मेल,
 और झिझक भरी आकांक्षाओं का,
 मन मस्तिष्क में मेल जोल,
 न अंलकारों की समझ,
 और मात्राओं की उठा-पटक,
 छंदों का विरह होना स्वयं में,
 लय बद्ध होने की मन में खटक,
 कहां आसान था सफ़र,
 लिखना, मिटाना बार-बार,
 कोई भी आकर करता सृजन को,
 अपने चक्षुओं से तार-तार,
 फिर स्वयं एकाकी होकर,
 स्वयं को ढांढस बंधानां,
 फिर सृजन को जन्म देना,
 और कलम फिर से उठाना,
 लिखना सामाजिक कुंठाओं पर,
 या प्रेम को आलोकित करना,
 कुंडली मार कर बैठे समाज पर,
 खादियों का शोषित करना,
 दुर्गम था पग रखना साहित्य में,
 आया था जब अनजान सा,
 शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा...

©अनुज शून्य से सृजन‌ की ओर
 पहला कदम विरान सा,
 दूर से, लिखना सभी को,
 होता कहीं आसान सा,
 मनोबल को सुदृढ़ करना,
 फिर पंक्तियों का ताल मेल,
 और झिझक भरी आकांक्षाओं का,
 मन मस्तिष्क में मेल जोल,
anuj5009765614358

अनुज

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