हाँ आदमी ही हूँ मैं, इसलिए देखता हूँ, देख कर चुप रह जाता हूँ, किसी दूसरे की क्या कहूँ, अपने मन की आवाज अनसुनी कर जाता हूँ, और कहता हूँ,कि शोर में मैं कुछ सुन नहीं पाता हूँ। हाँ आदमी ही हूँ मैं, इसलिए देखता हूँ, देख कर चुप रह जाता हूँ, किसी दूसरे की क्या कहूँ, अपने मन की बात, अनसुनी कर जाता हूँ, और कहता हूँ,कि शोर में मैं कुछ सुन नहीं पाता हूँ।