मिट्टी की कोख में नन्हा - सा बीज जाता है, फूलता- फलता है,विशाल वृक्ष बन जाता है। यही वनस्पति बस रूप बदल लेती है, अन्न माँस दूध से सबको पोषण देती है। फूल तितली मछली सब मिट्टी के ही रंग हैं, कंचन-सी काया यह, मिट्टी का ही अंग है। बनता है मिट्टी से,मिट्टी से ही बढता है, सब मिट्टी का हिस्सा,मिट्टी का किस्सा है। कौन किसका वंश-कुल,सब इसीके अंश हैं, दंभ किस बात का,जब सबका यही अंत है। माटी का ऋण यहीं हर कोई लौटाता है, मिट्टी से जो लिया,पुनः मिट्टी हो जाता है। मिट्टी की कोख में नन्हा - सा बीज जाता है, फूलता- फलता है,विशाल वृक्ष बन जाता है। यही वनस्पति बस रूप बदल लेती है, अन्न माँस दूध से सबको पोषण देती है। फूल तितली मछली सब मिट्टी के ही रंग हैं, कंचन-सी काया यह, मिट्टी का ही अंग है।