Nojoto: Largest Storytelling Platform

good morning ©Amjad Hussain #इतिहास_के_पन्नों_स

good morning

©Amjad Hussain
  #इतिहास_के_पन्नों_से 

"चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है..."
गुलाम अली की गाई यह ग़ज़ल तो हम सभी ने सुनी है और आज़ादी की लड़ाई की पहचान 'इंकलाब ज़िंदाबाद' का नारा भी! लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों चीज़ों में एक चीज़ कॉमन क्या है? वह हैं हसरत मोहानी। वही भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और उर्दू कवि हसरत मोहानी, जिन्होंने अपनी कलम से अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया था।
उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कस्बा मोहान में हुआ था। मौलाना हसरत का असली नाम सैयद फ़ज़ल-उल-हसन था, लेकिन वह कविताओं और ग़ज़लों में अपना नाम हसरत इस्तेमाल करते थे। यानी यह उनका पेन नेम था। प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में दाखिला लिया था और कॉलेज के दौरान ही क्रांतिकारी आंदोलनों में कूद पड़े। इसी वजह से जेल भी जाना पड़ा। कॉलेज से निष्काषित भी हो गए, लेकिन आज़ादी के प्रति मोहानी की दीवानगी की कोई हद नहीं थी। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने में 1903 में 'उर्दू-ए-मुअल्ला’ पत्रिका निकालनी शुरू की जो अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ लिखती थी। इसके बाद 1907 में उन्हें फिर से जेल हुई और उनकी पत्रिका बंद करवा दी गई।
साल 1907 तक वह कांग्रेस के साथ रहे। उसके बाद बाल गंगाधर तिलक के कांग्रेस छोड़ने पर मौलाना ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया क्योंकि वह तिलक के करीबियों में से एक थे। फिर वह गर्मदल के क्रन्तिकारियों के साथ स्वतंत्रता के लिए लड़ने लगे। साल 1921 में हसरत मोहानी ने अहमदाबाद में हुए कांग्रेस सम्मेलन के दौरान सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव तो उस समय पारित नहीं हो सका लेकिन उन्हें 1925 में फिर से जेल में डाल दिया गया। लेकिन इससे पहले ही मौलाना मोहानी साल 1921 में ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा भारत को दे चुके थे। यह वही नारा है जिसे भगत सिंह ने हमेशा के लिए अमर कर दिया।
देश की आज़ादी के बाद हसरत मोहानी ने कोई भी सरकारी सुविधा लेने से इंकार कर दिया था। खुद के खर्चे से संसद जाते थे। उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी देश के लिए कुर्बान कर दी। 13 मई 1951 को लखनऊ में हसरत मोहानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका नाम इतिहास के पन्नों में आज भले ही धुंधला हो गया हो लेकिन उनके योगदान और कुर्बानियां अमर हैं।

#इतिहास_के_पन्नों_से "चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है..." गुलाम अली की गाई यह ग़ज़ल तो हम सभी ने सुनी है और आज़ादी की लड़ाई की पहचान 'इंकलाब ज़िंदाबाद' का नारा भी! लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दोनों चीज़ों में एक चीज़ कॉमन क्या है? वह हैं हसरत मोहानी। वही भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और उर्दू कवि हसरत मोहानी, जिन्होंने अपनी कलम से अंग्रेज़ों की नाक में दम कर दिया था। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के कस्बा मोहान में हुआ था। मौलाना हसरत का असली नाम सैयद फ़ज़ल-उल-हसन था, लेकिन वह कविताओं और ग़ज़लों में अपना नाम हसरत इस्तेमाल करते थे। यानी यह उनका पेन नेम था। प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में दाखिला लिया था और कॉलेज के दौरान ही क्रांतिकारी आंदोलनों में कूद पड़े। इसी वजह से जेल भी जाना पड़ा। कॉलेज से निष्काषित भी हो गए, लेकिन आज़ादी के प्रति मोहानी की दीवानगी की कोई हद नहीं थी। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने में 1903 में 'उर्दू-ए-मुअल्ला’ पत्रिका निकालनी शुरू की जो अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ लिखती थी। इसके बाद 1907 में उन्हें फिर से जेल हुई और उनकी पत्रिका बंद करवा दी गई। साल 1907 तक वह कांग्रेस के साथ रहे। उसके बाद बाल गंगाधर तिलक के कांग्रेस छोड़ने पर मौलाना ने भी पार्टी का साथ छोड़ दिया क्योंकि वह तिलक के करीबियों में से एक थे। फिर वह गर्मदल के क्रन्तिकारियों के साथ स्वतंत्रता के लिए लड़ने लगे। साल 1921 में हसरत मोहानी ने अहमदाबाद में हुए कांग्रेस सम्मेलन के दौरान सबसे पहले पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव रखा था। प्रस्ताव तो उस समय पारित नहीं हो सका लेकिन उन्हें 1925 में फिर से जेल में डाल दिया गया। लेकिन इससे पहले ही मौलाना मोहानी साल 1921 में ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का नारा भारत को दे चुके थे। यह वही नारा है जिसे भगत सिंह ने हमेशा के लिए अमर कर दिया। देश की आज़ादी के बाद हसरत मोहानी ने कोई भी सरकारी सुविधा लेने से इंकार कर दिया था। खुद के खर्चे से संसद जाते थे। उन्होंने अपनी आखिरी सांस भी देश के लिए कुर्बान कर दी। 13 मई 1951 को लखनऊ में हसरत मोहानी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका नाम इतिहास के पन्नों में आज भले ही धुंधला हो गया हो लेकिन उनके योगदान और कुर्बानियां अमर हैं। #News #Poet #FreedomFighter #slogan #historyofIndia #inquilabzindabad #MaulanaHasratMohani

93 Views