बन के मासूम, हया ओढ़ के वो सोई थी। ऐसा लगता था कोई हूर आके सोई थी। मैं आंखे बंद भी करता तो किस तरह करता, मेरी बाहों में मेरी हीर सज के सोई थी। हिलना डुलना भी मेरे जिस्म को मंज़ूर न था, मेरे सीने मे वो जब सर अपना रख के सोई थी। उसके हुस्न को देखा तो ये ख़याल आया, आसमां से कोई परी उतर के सोई थी।