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बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था,

बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था,                              

हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, 
                 "फूस" की जगह छप्परों पर "खपरैल" आ गए थे.....

नाशपाती के बागानों के "बाड़" ऊंचे हो गए थे 
और महाशय की "आई बी" जीर्ण शीर्ण मिली.....

अरे हां और वो काका काकी..जो लकड़ी के चुल्हे पर की दाल 
पकाकर ला दिया करते थे, समय चक्र ने उन्हें लील लिया था....

 एक और बात गौरतलब थी..
.बंदरों की "संतति" आशातीत बढ़ी थी...और व्यवहार "मानवीय" लग रहे थे.... 

बच्चों का "उत्साह" वैसा ही जैसा "तेरह वर्ष" पहले मेरे भीतर था.....

नेतरहाट की "यात्रा".... "महाशय" के साथ.... "बाइक" पर.... 
"हमारा बजाज" के ऐड पर "अभिनय" करते हुए........
वही जंगलों-पहाड़ों के मध्य से गुज़रते रास्ते.... वही "सुकून" की हवा....वही "शांति" की अनुभूति....वही "सूर्यास्त"...कुछ सिखाता हुआ....वही "सूर्योदय".....कुछ जगाता हुआ....

"नेतरहाट....एक संस्मरण"
वर्षों पूर्व लिखने की "सोची" थी...उस सोच को "शब्द" मिले "कच्चे-पक्के" से......
कुछ "भुल" गई.... कुछ "याद" रहा...कुछ "समेट" लाई...कुछ "छूट" गया........
                                                      @पुष्पवृतियां






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©Pushpvritiya
  बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था,                              

हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, 
                 "फूस" की जगह छप्परों पर "खपरैल" आ गए थे.....

नाशपाती के बागानों के "बाड़" ऊंचे हो गए थे 
और महाशय की "आई बी" जीर्ण शीर्ण मिली.....
pushpad8829

Pushpvritiya

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streak icon1

बदला तो ज्यादा कुछ नहीं था, हाँ.......कुछ सड़कें पक्की हो गई थी, "फूस" की जगह छप्परों पर "खपरैल" आ गए थे..... नाशपाती के बागानों के "बाड़" ऊंचे हो गए थे और महाशय की "आई बी" जीर्ण शीर्ण मिली..... #ज़िन्दगी

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