दोहा :- भाई मेरा बन भरत , रहता हरपल साथ । देख चरण वह पादुका , लिए खड़ा है हाथ ।। नहीं लखन की बात को , पूछो हमसे आज । मेरी सेवा के सिवा , और न जाने काज ।। मुझको अतिशय प्रिय लगे , महावीर हनुमान । मैं उनके ही नाम का , करता नित गुणगान ।। घर-घर में रहते लखन , पहचानें अब आप । रहकर हरपल संग में , हर लेता संताप ।। प्राणों से प्यारी सखी , जनक दुलारी आज । मेरे सारे दुख हरें , करें हृदय पर राज ।। देखा परमेश्वर यहीं , मातु-पिता के रूप । नतमस्तक निशिदिन रहूँ , मान उन्हें अब भूप ।। बात मान गुरुदेव की , चलूँ सही मैं राह । पूर्ण तभी होंगी सभी , मन में उपजी चाह ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- भाई मेरा बन भरत , रहता हरपल साथ । देख चरण वह पादुका , लिए खड़ा है हाथ ।। नहीं लखन की बात को , पूछो हमसे आज । मेरी सेवा के सिवा , और न जाने काज ।। मुझको अतिशय प्रिय लगे , महावीर हनुमान ।