तोल रही है जिंदगी अब आठो पहर जाऊँ तो जाऊँ मैं किस डगर किस शहर।। हर रिश्ते ने मुँह मोड़ रखा है मुझसे इसलिए हो गई मैं अपने ही घर से बेघर।। संवेदना की चाशनी में हूँ मैं सनी हुई जिससे उमड़ती है भावों की अनकही लहर।। न कर सकी तवज्जों मैं किसी भी शख़्स की इसलिये भटक रही हूँ ले दर्द मैं दर - बदर।। उम्मीद की लौ सब बुझ गई अब मेरी यहाँ बस जी रही हूँ दफन करके ख़्वाब मैं मगर।। हूँ बुरी मैं सबके नज़रों में ए #अंजली# सुनो कौन क्या सोचता है रखती हूँ उसकी भी ख़बर।। अंजली श्रीवास्तव