कभी तो मेरी तलाश में तुम, मेरी अनुभवों की यात्रा पर आओगे, और एक दिन इन सबके बीच से, मेरा 'मैं' निकाल पाओगे। हाँ मैं खेलती हूँ रोज एक खेल, शब्दों से,बातों से, चाही-अनचाही यादों से, अपने ही जज्बातों से। शतरंज की बाजी है, शब्दों से शह देती हूँ, उनसे ही मात खाती हूँ, लोगों से जीतती जाती हूँ,