गुजरे लम्हें को मुठ्ठी में करलु बंध.... इश्क़ की दास्ता को याद बनालू.... फितरत - ए- वक्त है रुकता नहीं.... तुम्हारे जज़्बात को दिल से लगालू... तुम्हारे जज़्बात ही,जब सरेराह मिटा गये, महक-ए-ज़ाफ़रान से, मुझे हासिल क्या। ये शिकायत नहीं,इक मशवरा है ऐ पंखी!, मेरे अश्क़ से,अब तेरी तिश्नगी बुझेगी ना। इरादतन बदल लिया जो रास्ता मैंने कभी, किसी जन्म ख़ुद को माफ़ी दे पाओगे क्या। #अशोक_अरुज #अल्फ़ाज़_जो_लिखे_तेरी_याद_में