मैंने ज़ो कुछ कहा है मेरा सहा हुआ है ज़ो तुम पड रहे हो वो मेरा लिखा हुआ है मेरी तन्हाइयों में तुम चलना चाहते हो तो चले चलो य तुम्हे पता लगाना होगा कि आखिर मेरी खामोशियों क़ो क्या हुआ है जबभी कोई मिलता है मुझे अपना सगा लगता है लेकिन दूर होते ही भूल जाता हूं उसे आखिर मेरी प्रीत क़ो क्या हुआ है वो आदमी अपनी मौन व्यथाओं में गुंथा हुआ दिख रहा है आखिर इस आदमी की हंसी क़ो क्या हुआ है ©Parasram Arora #क्या हुआ है?