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हा मैं असभ्य हूँ क्यों की मैं फ़टे पुराने ची

हा 
मैं असभ्य हूँ 
क्यों की  मैं   फ़टे  पुराने  चीथड़ों से  तन अपना   ढकता   हूँ 
  धुल भरे  मैदानों मे  लिथड़ता हूँ 
 डोल  की   थाप सुनते ही थिरकता हूँ 
कितना साधारण कितना  सस्तापन   है  मेरे इस  क्लांत   असभ्य   जीवन का
हा 
मैं असभ्य हूँ 
क्यों की  मैं   फ़टे  पुराने  चीथड़ों से  तन अपना   ढकता   हूँ 
  धुल भरे  मैदानों मे  लिथड़ता हूँ 
 डोल  की   थाप सुनते ही थिरकता हूँ 
कितना साधारण कितना  सस्तापन   है  मेरे इस  क्लांत   असभ्य   जीवन का