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कोई फिरसे मेरा नाम ले, फिरसे मेरी जां निकले आह कम

कोई फिरसे मेरा नाम ले, फिरसे मेरी जां निकले
आह कम हो थोड़ी तो फिर से ये दुआ निकले

वह जो तय था इबादतगाहों से आवाज़ क्या निकली
तुम अपने छत पर निकली, हम अपने छत पर निकले

एक तरफ तुम और नीम पर चहचाहती पंछियां
एक तरफ मंदिरों से घंटियां, मस्जिदों से अजां निकले

वह जो आवारा सा एक आशिक फिरता है तेरी आंखों में
कोई जो गया कूचे में तुम्हारे, फिर क्या निकले

यह जो पिलाती हो आंखों से नशीले जाम तुम
तुम्हारे घर की खुदाई हो तो मयकदा निकले

©KUMAR MANI(#KM_Poetry)
  #निकले