इक आग सी सीने मे सुलग रही है क्यों न इसका इज़हार मै अपने गीत के ज़रिये करू कभी मै चमन का मजा लेता हूँ कभी मुझे कफस भी अच्छा लगता है. समझ मे नही आता आखिर मै स्थाई निवास के लिये क़िसे चुनू दर्द और पीडा झेलने के लिये अभी काफ़ी उम्र पड़ी है बाकी फिलहाल क्यों न ये वक्त हंस कर गुज़ार. लू जीना भी मुझे आ गया है मरना भी मै सीख गया हूँ. अबतो कोई आकर बताये मुझे जीने मरने के बाद मै क्या करू ©Parasram Arora इक असगर सी.....