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ज़हर न दे सखा वो मुझे, अपने वज़ूद का खौफ बहुत था,

ज़हर न दे सखा वो मुझे,
अपने वज़ूद का खौफ बहुत था, 
मरहम न लगाया दर्द पर मेरे, 
ज़माने की नज़रों से बचना जरूर था,
तुर्बत का सफर फिर यूँ तय किया मैंने, 
कशमाकश में रूह का सिसकना मकबूल था,
दवा न दी वक़्त पर उसने मुझे,
तड़पाना उसे बेशक मंजूर था!

©Dr. Nishi Ras (Nawabi kudi) 
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