ठूँठ कल तक था मैं घना वृक्ष आज बना हूँ ठूँठ बिन अपराध सजा पाया हूँ भाग्य गया है रूठ जिसको मैं छाया देता था देता था फल फूल उसी ने काटे शाखाओं को खुशियाँ मेरी लूट नफरत से सब मुझे देखते समझ रहे बेकार मेरी पीड़ा कोई न समझे लोग समझते झूठ बेखुद मै अपनों से हारा मन में घोर निराशा परोपकार करके पछताता हृदय गया है टूट ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #ठूँठ हिंदी कविता कविता