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दिखता बहुत विशाल हूँ मुझमे अथाह बल है दुश्मन न

दिखता बहुत विशाल हूँ मुझमे अथाह बल है
   दुश्मन न कोई है मेरा मन में कोई छल है

 डरता न कोई मुझसे किसी को नहीं डराता
शायद इसलिए कोई इज्जत न आजकल है

औरों की तरह खुद मै खूंखार बन न पाया
बदहाल आज हूँ मै शायद इसी का फल है

  कोई भी बाँध देता जंजीर से जकड़ कर
  ले जाता मुझको जबरन घोड़ों के अस्तबल है

  रखता है मुझको भूखा  बेखुद है मार पड़ती
इंसाफ की तराजू मेरे लिए विफल है

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
   हाथी

हाथी #कविता

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