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"इंसान में इंसानियत होती गर बाकी, मंदिर-मस्जिद की

"इंसान में इंसानियत होती गर बाकी,
मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।।
पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान।
दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब,
खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।।"

©नवनीत ठाकुर # "इंसान में इंसानियत होती गर बाकी,
मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।
पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान,
दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब,
खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।"
"इंसान में इंसानियत होती गर बाकी,
मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।।
पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान।
दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब,
खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।।"

©नवनीत ठाकुर # "इंसान में इंसानियत होती गर बाकी,
मंदिर-मस्जिद की साजिशें होती शायद नाकाम।
पंडित भुला माला, नमाज़ी भुला ईमान,
दिल से दिल जोड़ने का नाम होता मज़हब,
खुदा मिलता हर दिल में, हर चेहरे में राम।"