Nojoto: Largest Storytelling Platform

प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती ह

प्राणों की मसोस, गीतों की-
कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं,
आँखों की बूँदें बूँदों पर,
चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं!
रे निठुर किस के लिए
मैं आँसुओं में प्यार खोलूँ?
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
        - माखनलाल चतुर्वेदी

©Arpit Mishra माखनलाल चतुर्वेदी
प्राणों की मसोस, गीतों की-
कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं,
आँखों की बूँदें बूँदों पर,
चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं!
रे निठुर किस के लिए
मैं आँसुओं में प्यार खोलूँ?
बोल तो किसके लिए मैं
गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ?
        - माखनलाल चतुर्वेदी

©Arpit Mishra माखनलाल चतुर्वेदी
arpitmishra6165

Arpit Mishra

New Creator