प्राणों की मसोस, गीतों की- कड़ियाँ बन-बन रह जाती हैं, आँखों की बूँदें बूँदों पर, चढ़-चढ़ उमड़-घुमड़ आती हैं! रे निठुर किस के लिए मैं आँसुओं में प्यार खोलूँ? बोल तो किसके लिए मैं गीत लिक्खूँ, बोल बोलूँ? - माखनलाल चतुर्वेदी ©Arpit Mishra माखनलाल चतुर्वेदी