सागर क़े प्राण अटके ज़ब तटो क़े आघात उसने सहे भविष्य क़े सुख सपने लहरों संग न जाने किस तरफ बहे सुख दुखदोनों मिले है आज एक ही सडक पर खूब गिले शिकवे हुए. गले मिले सू बहे क्या मज़ाल उस कागज की नाव का ज़ो जवाऱ भाटो का डटकर मुकाबल कर सके मुट्ठी भर छाँव की क्या बिसात ज़ो आँगन मे फैली धूप का सामना कर सके ©Parasram Arora सामना