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पल्लव की डायरी प्राकृतिक है नदी पहाड़,भार अनैतिक मत

पल्लव की डायरी
प्राकृतिक है नदी पहाड़,भार अनैतिक मत डालो
जिस रूप में है सौन्दर्यता बस निहारो
इनकी गोद मे आकर,लाभ तप तपस्या का उठा लो
देव भूमि है हिमालय,कुकर्मो से विध्न मत डालो
नर से नारायण बने कितने भगवन
मौज मस्ती पिकनिक से,अस्तिव इनके
खतरों में मत डालो
अनुभूति अनुभव कर,शरण मे आकर
मुक्ती की परम्परा डालो
भोग के लिये जग है सारा
अपवित्रा का अंश इनमें ना डालो
                                           प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  भोग के लिये जग है सारा, अपवित्रा के अंश इनमें मत डालो

भोग के लिये जग है सारा, अपवित्रा के अंश इनमें मत डालो #कविता

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