है मधुसूदन... इस महाभारत मे तुम रणभेरी बजा दो गांडीव मुझे थमा दो.. भले रथ तुम हाँक लो दुर्योधन की अक्षुण्णि सेना मेरे सामने है और पूरी सेना मेरे निशाने पर है मै पलायनवादी नहीं कर्मठ योद्धा हूँ इन सब को मार कर ही मै मरू यही मेरी कामना है और मेरे कर्मो की फलाकांक्षा भी यही है गीता का ज्ञान अर्जुन क़े लिए जरूरी था. पर मै उस ज्ञान को पहले से ही आत्मसात कर चुका हूँ और अब तुम मुझे बहलाने . या फुसलाने की चेष्टा भी मत करना लेकिन रणभूमि की इस रक्त वाहिनी नदी किनारे तुम.. अपनी बंसी बजाना मत भूलना महाभारत.....