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ग़ज़ल :- बिना उनके हमारी आँख में सपना नहीं रहता । ह

ग़ज़ल :-

बिना उनके हमारी आँख में सपना नहीं रहता ।
हमारी ज़िन्दगी वह है हमें कहना नहीं रहता ।।१

वफ़ा की आड़ में जो दे दगा अपना नहीं रहता ।
लगाते पान सा चूना मगर कत्था नही रहता ।।२

बहन अब बाँध दो राखी हमारे हाँथ में आकर ।
बता दो पाक इससे अब कहीं रिश्ता नहीं रहता ।।३

हवाएँ आज कैसी चल पड़ी हैं अब नगर तेरे ।
सुना इंसान का इंसान से नाता नहीं रहता ।।४

पढ़ाओ तुम उन्हें फिर से यहाँ पर प्रेम की भाषा।
बने जो स्वार्थ से रिश्ता सदा चलता नहीं रहता ।।५

मुकरना बात से अपनी अदा में जिस कि शामिल हो ।
यकीं उस पर कभी करना सुनों अच्छा नहीं रहता ।।६

इन्हें तुम पाठ नेकी का नहीं इतना पढ़ाओ अब ।
यहाँ सच बोलकर कोई सुनो जिंदा नहीं रहता ।।७

महल में बैठकर जो तुम बनाते हो नियम सारे ।
तुम्हारे ही घरों तक आज यह मसला नहीं रहता ।।८

किसी को आज समझाना प्रखर है भूल मानव की ।
यहाँ पर दूध पीता अब सुनो बच्चा नहीं रहता ।।९

२८/०८/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222×4  :- आ नही रहता

बिना उनके हमारी आँख में सपना नहीं रहता ।
हमारी ज़िन्दगी वह है हमें कहना नहीं रहता ।।१

वफ़ा की आड़ में जो दे दगा अपना नहीं रहता ।
लगाते पान सा चूना मगर कत्था नही रहता ।।२
ग़ज़ल :-

बिना उनके हमारी आँख में सपना नहीं रहता ।
हमारी ज़िन्दगी वह है हमें कहना नहीं रहता ।।१

वफ़ा की आड़ में जो दे दगा अपना नहीं रहता ।
लगाते पान सा चूना मगर कत्था नही रहता ।।२

बहन अब बाँध दो राखी हमारे हाँथ में आकर ।
बता दो पाक इससे अब कहीं रिश्ता नहीं रहता ।।३

हवाएँ आज कैसी चल पड़ी हैं अब नगर तेरे ।
सुना इंसान का इंसान से नाता नहीं रहता ।।४

पढ़ाओ तुम उन्हें फिर से यहाँ पर प्रेम की भाषा।
बने जो स्वार्थ से रिश्ता सदा चलता नहीं रहता ।।५

मुकरना बात से अपनी अदा में जिस कि शामिल हो ।
यकीं उस पर कभी करना सुनों अच्छा नहीं रहता ।।६

इन्हें तुम पाठ नेकी का नहीं इतना पढ़ाओ अब ।
यहाँ सच बोलकर कोई सुनो जिंदा नहीं रहता ।।७

महल में बैठकर जो तुम बनाते हो नियम सारे ।
तुम्हारे ही घरों तक आज यह मसला नहीं रहता ।।८

किसी को आज समझाना प्रखर है भूल मानव की ।
यहाँ पर दूध पीता अब सुनो बच्चा नहीं रहता ।।९

२८/०८/२०२३      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222×4  :- आ नही रहता

बिना उनके हमारी आँख में सपना नहीं रहता ।
हमारी ज़िन्दगी वह है हमें कहना नहीं रहता ।।१

वफ़ा की आड़ में जो दे दगा अपना नहीं रहता ।
लगाते पान सा चूना मगर कत्था नही रहता ।।२