हमारी समस्याओ का जन्मस्थान हमारा परिवार या हमारा दफ्तर नहीं बल्कि हमारा ये मन ही हैँ हमारा ये मन जिसे रखा अद्भुत उपकरण क़े रूप मे काम करना था वह नालायक उपकरण बन गया हैँ मनचाही सौगाते देने वाला ये साधन पीड़ा पहुंचाने वाला बन गया हैँ और हम इस मन क़े हाथों की कठपुतली बन कर रह गये हैँ मन यांने एक नालायक उपकरण