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पल्लव की डायरी काल महाकाल दस्तक देता अनहोनी का साम

पल्लव की डायरी
काल महाकाल दस्तक देता
अनहोनी का साम्राज्य है
बीते कितने दिन और रात 
मोह माया की आंधी से
खोता शिवतत्व  का आधार है
जगाओ लौ देवत्त्व से
नाशवान देह और संसार है
स्वरूप देवत्त्व का धरो 
शिवरात्रि पर तप और ध्यान का डमरू बजाना है
डसने बैठे मिथ्यात्व के कितने सांप
इनसे परे जाकर महादेव का रूप 
हम सबको अपने अंदर  प्रगट कराना है
                                           प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
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