क्यों न अदालतों क़े परिसर खाली कराके मंदिर मस्जिद बना दिए जाय ताकि अदालते इन इबादतगाहों क़े बीच लगा सके.।.... फिर जरूरत नहीं रहेगी गीता और कुरआन की झूठी कसमो को खाने की क्योंकि तब इन्साफ की तराज़ू खुदा क़े हाथ मे होंगी..... और न्याय भी सही मायने हो सकेगा इन्साफ तब खुली आँखों से हो सकेगा क्योंकि तब न्याय क़े देवता की आँख पर पट्टी नहीं बंधी होंगी न्याय का देवता........