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अहंकार की प्रचंडता से सुप्त चेतना की धर्मांधता तक

अहंकार की प्रचंडता से सुप्त चेतना की धर्मांधता तक
कदाचित व्यवस्था की व्याख्या में व्यापक भेद है व्याप्त

लज्जित हो कर व्यथित होती नारी के दमन सिद्धांत तक
पुरूष को नीच कर्मों का ज्ञान क्यों नहीं होता विनाश तक
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla
  व्यापक भेद

व्यापक भेद #शायरी

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