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मैं दूर जाता हूँ ●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●● मुबारक त

मैं दूर जाता हूँ
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मुबारक तुम्हें दुनिया तुम्हारी मैं दूर जाता हूँ
जब बदल गए हो तुम तो खुद को दूर पाता हूँ
मसल दिया तुमनें जब अटूट विश्वास को मेरे
मेरे मौन का कारण न अब तुमकों बताता हूँ

माना साथ दिया तुमनें कभी गर्दिशों में मेरा
तुम्हारे उस त्याग के मिसरे सबको सुनाता हूँ
पर मान लो ये जख्म भी दिया है तुमने ही
अब दर्द में हूँ पर जख्म न तुमकों दिखाता हूँ

अब तक जो किया मैंने वो बस फर्ज था मेरा
उस फर्ज की जमानत न अब तुमसे पाता हूँ
पता भी है मुझकों क़ुसूर वक्त का है फिर भी
इंसान हूँ मैं भी शब्दों से छलनी हो जाता हूँ

शायद नजरों में तुम्हारें ओहदा खो दिया मैंने
जब हर बात में ही खुद को कुसूरवार पाता हूँ
अब खुश रहोगें तुम जब मुझकों दूर पाओगे
चलो वक्त मिलने पर कभी सपनों में आता हूँ
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शशिकान्त वर्मा 'शशि'
दिनाँक- ११/०१/२०२३

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