जीवन क़े समुन्द्र मंथन मे जो कलश निकला था उसे मैंने "अमृत * समझ संभाल कर रख लिया था जो कदाचित मेरे जीवन संघर्षों का मेरे लिए प्रतिकातमक उपहार था आज ज़ब उस कलश का मैंने ढक्क्न उठा कर देखा तो उस कलश मे मुझे "अमृत " की जगह अपने ही पसीने की बूंदो से मुख़ातिब होना पड़ा मुझे प्रसन्नता है क़ि उस कलश मे पड़ी पसीने की बूंदों को सहेजने मे मैंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था ©Parasram Arora समुद्र मंथन