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अनेकों कष्ट सहते सहते पृथ्वी भी भड़कने लगती है क्र

अनेकों कष्ट सहते सहते पृथ्वी भी भड़कने लगती है
क्रोध सदियों पीते पीते एक दम दहकने लगती है 

शांत सी दिखने वाली एकदम से पिंघलने लगती है
और देखते ही देखते आग की नदी बहने लगती है

कर देती है भस्म सब बगैर भेदभाव बरते
होश तब आता जब लोग दिख जाते हैं पछताते 
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla
  आग की नदी

आग की नदी #शायरी

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