पल्लव की डायरी बहकती कलमे गठ जोड़ करती है दरकती सत्य की दीवारें झूठो की शान में कशीदे गढ़ती है मोल के भाव मे कलमे बिकती है न्याय की आवाजें दबाकर अन्याय की जी हजूरी करती है सत्ता की चेरी बनकर मुल्क को गुमराह करती है गरीबो की हमदर्द रही कलमे सत्ता से संघर्ष करती है कितनो के सर कलम मगर हक़ीक़ते लिखती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" सत्ता से संघर्ष करती है #AWritersStory