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उसके प्यार अनगिनत "खत "जो आज भी महफूज है सीने में

उसके प्यार अनगिनत "खत "जो आज भी महफूज है सीने में मेरे !उसके प्यार  में ताउम्र मैं अनाड़ी रहा वो करती रही प्यार का छलावा ,दोस्ती के नाम पर! मन मंदिर में उसकी सूरत बिठाकर मैं तो बस पुजारी रहा! उसके प्यार में ताउम्र मैं अनाड़ी रहा! धीरे-धीरे वक्त ने जब ली करवट एक धनवान का साथ पाकर वह बन गई धनी !पर मेरा इश्क उसके प्यार में भिकारी रहा! उसके खयालों मे घर बार अपना भूलाकर अनगिनत ख्वाबों को मिटाकर ,मैं हो गया पागल, उसके प्यार में हां मैं ताउम्र अनाड़ी रहा!

©Dinesh Kashyap
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