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नहीं रूठ जाएं मनाने से पहले । निभाओ वफ़ा तुम जताने

नहीं रूठ जाएं मनाने से पहले ।
निभाओ वफ़ा तुम जताने से पहले ।।१

किया खून पानी रईसी इधर जो ।
गया मिट उसे मैं मिटाने से पहले ।।२

हुई है सियासत यहाँ आदमी पर ।
कि लूटा उसे है खजाने से पहले ।।३

चलो बाँट दो तुम हमें मज़हबों में ।
मगर अब मिला सताने से पहले ।।४

नही तोड़ना तुम दिलो को हमारे ।
मिला एक दिल है लगाने से पहले ।।५

नहीं दूर होगा अँधेरा तुम्हारा ।
जलाओ दिए तुम बुझाने से पहले ।।६

कदर ही नही है यहाँ बेटियों की ।
कि लूटी है अस्मत बचाने से पहले ।।७

नही चटपटा तू बना अब खबर को ।
बचा लाज उसकी कमाने से पहले ।।८

न हिन्दू न मुस्लिम सभी आदमी है ।
मिटा भेद तू ये बताने से पहले ।।९

रसूले खुदा का नियम है यही अब ।
नही ईद हो चाँद आने से पहले ।।१०

मुझे चाँद मेरा न आया नज़र है ।
नही जश्न हो चाँद आने से पहले ।।११

मुबारक सभी को प्रखर ईद की दो ।
सेवई सुनो आज खाने से पहले ।।१२

२१/०४/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR नहीं रूठ जाएं मनाने से पहले ।
निभाओ वफ़ा तुम जताने से पहले ।।१

किया खून पानी रईसी इधर जो ।
गया मिट उसे मैं मिटाने से पहले ।।२

हुई है सियासत यहाँ आदमी पर ।
कि लूटा उसे है खजाने से पहले ।।३
नहीं रूठ जाएं मनाने से पहले ।
निभाओ वफ़ा तुम जताने से पहले ।।१

किया खून पानी रईसी इधर जो ।
गया मिट उसे मैं मिटाने से पहले ।।२

हुई है सियासत यहाँ आदमी पर ।
कि लूटा उसे है खजाने से पहले ।।३

चलो बाँट दो तुम हमें मज़हबों में ।
मगर अब मिला सताने से पहले ।।४

नही तोड़ना तुम दिलो को हमारे ।
मिला एक दिल है लगाने से पहले ।।५

नहीं दूर होगा अँधेरा तुम्हारा ।
जलाओ दिए तुम बुझाने से पहले ।।६

कदर ही नही है यहाँ बेटियों की ।
कि लूटी है अस्मत बचाने से पहले ।।७

नही चटपटा तू बना अब खबर को ।
बचा लाज उसकी कमाने से पहले ।।८

न हिन्दू न मुस्लिम सभी आदमी है ।
मिटा भेद तू ये बताने से पहले ।।९

रसूले खुदा का नियम है यही अब ।
नही ईद हो चाँद आने से पहले ।।१०

मुझे चाँद मेरा न आया नज़र है ।
नही जश्न हो चाँद आने से पहले ।।११

मुबारक सभी को प्रखर ईद की दो ।
सेवई सुनो आज खाने से पहले ।।१२

२१/०४/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR नहीं रूठ जाएं मनाने से पहले ।
निभाओ वफ़ा तुम जताने से पहले ।।१

किया खून पानी रईसी इधर जो ।
गया मिट उसे मैं मिटाने से पहले ।।२

हुई है सियासत यहाँ आदमी पर ।
कि लूटा उसे है खजाने से पहले ।।३