#Pehlealfaaz खामोशी जो उतरी वरक़ पे अमर अफसाना हो गया, रोशनाईं का कागज पे हसीन आशियाना हो गया, आंखों से नित उतर जाने का रोज बहाना हो गया, दिलबर सी अब हो खुशामद सावन स्याना हो गया। सीप को फिर जीने का ये अदद बहाना मिल गया, लफ्ज़ लबों की लाली से बनकर गुल खिल गया, रुके रुके ख्वाबों का आज दरीये सा बहना हो गया, दिलबर सी अब हो खुशामद सावन स्याना हो गया। इंतजार जवां हुए हर कितनी राहें तकी आंखो ने, हर ख्यालों को भुलाया बेवक्त भीग इन आंखो ने, आज साथ भीग जाने का मुबारक फ़साना हो गया, दिलबर सी अब हो खुशामद सावन स्याना हो गया। लिखा था उनका नाम यहां समन्दर के किनारे पर, जहां कभी मिलता था वो रिवायतों को किनारे कर, मौजो पे अाई लहरों में डूब वो नाम बेगाना हो गया, दिलबर सी अब हो खुशामद सावन स्याना हो गया। कौन महफूज़ रहा है पर्दे में कौन बचा नकाबो से, द्रौपदी कहां बाज़ार गई थी लूटने को नवाबों से, नज़रों से उतरी आब-ए-हया से शैतां ज़माना हो गया, दिलबर सी अब हो खुशामद सावन स्याना हो गया। #विद्या_पद्य/#काव्य #वार_रविवार #तिथि_13_10_2019 #रचना_सावन_स्याना_हो_गया मेरी पहली रचना 'सावन स्याना हो गया'....,जो आठ साल पूर्व अगस्त 2011 सावन महीने में लिखी थी! उसके बाद मेरी काव्य यात्रा शुरू हुई जो अब तक चल रही है...।। रचना ....